वाराणसी की बेटी के साथ हैवानियत — समाज और सिस्टम दोनों कटघरे में
*_रितेश श्रीवास्तव-ऋतुराज_*
_वाराणसी… ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्म की धरती।_
_लेकिन इसी पवित्र ज़मीन पर एक बेटी के साथ दरिंदगी की ऐसी कहानी लिखी गई, जो इंसानियत को शर्मसार कर देती है
*‼️👉सिर्फ 7 दिन… और 23 दरिंदे।*
कहां थी पुलिस?
कहां थे होटल संचालक?
कहां था समाज?
वाराणसी की एक छात्रा के साथ 7 दिनों तक 23 दरिंदों द्वारा किए गए अमानवीय अपराध ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और कानूनी तंत्र की विफलता का प्रतीक है।
एक युवती, जो अपनी मेहनत और सपनों के साथ जीवन की दिशा तय करने निकली थी, उसे किस तरह षड्यंत्रपूर्वक फंसाकर दरिंदगी का शिकार बनाया गया, यह किसी भी संवेदनशील इंसान को झकझोर देने के लिए काफी है। दोस्ती के नाम पर विश्वासघात, ब्लैकमेलिंग, गैंगरेप, नशीले पदार्थों का इस्तेमाल, वीडियो बनाकर धमकी देना और फिर अपराधियों का एक-एक कर शामिल होते जाना — यह सब किसी स्क्रिप्टेड क्राइम थ्रिलर की कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है।_
सबसे बड़ा सवाल है कि इतने दिन तक लड़की लापता रही, और किसी ने कुछ देखा या बोला नहीं। होटल, कैफे, सड़कें, कार — क्या कोई भी जगह इतनी असंवेदनशील हो गई है कि वहां चीखें भी अनसुनी रह जाती हैं?_
इस घटना से जुड़ा दूसरा पहलू यह भी है कि पीड़िता की मां के अनुसार कई बार लड़की काम के सिलसिले में बाहर रहती थी। यह संकेत करता है कि लड़की स्वावलंबी थी। लेकिन आज वह और उसका परिवार सामाजिक और मानसिक रूप से टूट चुका है।
पुलिस पर सवाल उठना लाजमी है। एक लड़की लगातार अलग-अलग जगहों पर शोषण का शिकार होती रही, वीडियो बनाए जाते रहे, होटल और गाड़ियों में घुमाया जाता रहा — और किसी भी स्तर पर कोई रोक नहीं लगी?
अब वक्त है कि इस मामले को एक ‘केस’ की तरह नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी के रूप में देखा जाए। दोषियों को जल्द से जल्द सख्त सजा दी जाए — ताकि समाज में यह संदेश जाए कि अपराध करने वालों के लिए भारत में कोई जगह नहीं है।
*‼️👉साथ ही, समाज को भी यह आत्ममंथन करने की जरूरत है कि कब तक हम ऐसी घटनाओं पर सिर्फ आक्रोश जताकर चुप बैठते रहेंगे? बेटियां सिर्फ नारे लगाने से सुरक्षित नहीं होंगी, उनके लिए एक सचेत, संवेदनशील और न्यायप्रिय माहौल बनाना होगा — और वह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।*



