पूर्व विधान परिषद सदस्य कांति सिंह ने विद्युत उद्योग में वर्टिकल व्यवस्था और निजीकरण पर रोक लगाने की माँग की
मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को लिखा पत्र — कहा, "यह नीति जनहित के विपरीत और ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा"

रितेश श्रीवास्तव-ऋतुराज
पूर्व विधान परिषद सदस्य कांति सिंह ने विद्युत उद्योग में वर्टिकल व्यवस्था और निजीकरण पर रोक लगाने की माँग की
मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को लिखा पत्र — कहा, “यह नीति जनहित के विपरीत और ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा”
लखनऊ, 25 अक्टूबर 2025।
पूर्व विधान परिषद सदस्य कांति सिंह ने प्रदेश में विद्युत उद्योग में लागू की जा रही वर्टिकल व्यवस्था और निजीकरण की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की माँग की है। इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष को एक विस्तृत पत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने इस नीति को जनहित और प्रदेश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए हानिकारक बताया है।

कांति सिंह ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन द्वारा तथाकथित वर्टिकल व्यवस्था को कानपुर, बरेली, मेरठ, अलीगढ़ के बाद अब राजधानी लखनऊ में भी 1 नवम्बर 2025 से लागू करने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि जिन नगरों में यह व्यवस्था पहले से लागू की गई है, वहाँ के परिणाम अत्यंत निराशाजनक रहे हैं — न तो उपभोक्ताओं को सुचारु विद्युत आपूर्ति मिल सकी है और न ही कर्मचारियों की कार्यस्थितियाँ संतोषजनक रही हैं।
कांति सिंह ने चेताया कि यह कदम धीरे-धीरे प्रदेश की विद्युत आपूर्ति प्रणाली को सरकारी नियंत्रण से हटाकर निजी संस्थानों को सौंपने की दिशा में ले जा रहा है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार, पूर्वांचल और दक्षिणांचल के 42 जिलों के निजीकरण का मसौदा भी तैयार किया जा चुका है, जो स्थिति को और गंभीर बना रहा है।
उन्होंने कहा कि विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति इस नीति का विरोध केवल कर्मचारियों के हित में नहीं, बल्कि किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों और आम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कर रही है। निजीकरण की यह प्रक्रिया प्रदेश की अर्थव्यवस्था, सेवा की गुणवत्ता और सार्वजनिक सुविधाओं के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगी।
कांति सिंह ने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उत्तर प्रदेश लोक लेखा प्राकलन समिति ने भी वर्टिकल व्यवस्था लागू करने का स्पष्ट विरोध किया है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि इस नीति पर तत्काल रोक लगाने का आदेश जारी किया जाए, ताकि जनहित, सेवा की स्थिरता और प्रदेश की ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखा जा सके।



