लखनऊ- महोदय, ये प्रतीक चिन्ह तो मेरे नहीं हैं, ये तो वार्ड नंबर 17 वाले मिश्रा जी के हैं!”

पेश है लखनऊ नगर निगम के प्रतीक चिन्ह वितरण समारोह में बदले नामो पर व्यंग्यात्मक, और हास्यपूर्ण समाचार लेख -ऋतुराज
📰 सम्मान समारोह में सम्मान की जगह मचा असम्मान!
प्रतीक चिन्हों में जब हो गया ‘नामों’ का घालमेल, मंच बना मेला!✍️ विशेष व्यंग्य रिपोर्ट —
लखनऊ — दो वर्ष के गौरवशाली (?) कार्यकाल के अवसर पर नगर निगम द्वारा आयोजित “सेवा और समर्पण” समारोह ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अगर कहीं अव्यवस्था में भी कोई कला छुपी है, तो वह नगर निगम के पास ही है।
🏆 सम्मान का मंच या पहचान का पंच?
जब पार्षदों के सम्मान की बारी आई तो मंच पर उपस्थित महापौर श्रीमती सुषमा खर्कवाल और नगर आयुक्त गौरव कुमार बड़े ही सलीके से अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्हों के साथ मंच पर विराजमान हुए। माहौल गरिमामय था — कम से कम तब तक, जब तक पार्षदों की नजर प्रतीक चिन्हों पर छपे “ग़लत नामों” पर नहीं पड़ी।
😲 “महोदय, ये प्रतीक चिन्ह तो मेरे नहीं हैं, ये तो वार्ड नंबर 17 वाले मिश्रा जी के हैं!”
बस फिर क्या था! मंच पर सम्मान का कार्यक्रम कब सामूहिक स्क्रैप-जांच ऑपरेशन में बदल गया, किसी को पता ही नहीं चला। एक ओर पार्षद अंगवस्त्र सम्हालते नज़र आए, तो दूसरी ओर प्रतीक चिन्हों की “बॉक्स तोड़ जांच” शुरू हो गई।
📦 “बॉक्स टू बॉक्स सर्विस”
स्टेज पर मौजूद मंच संचालक ने घबराते हुए सभी जोनल अधिकारियों को आवाज़ लगाई —
“अपने-अपने पार्षद खुद पहचानो, खुद उठाओ, खुद बैठाओ!”
और फिर शुरू हुआ बॉक्स टू बॉक्स सर्विस प्रोटोकॉल — जिसमें अधिकारी अपने-अपने जोन के नाम पढ़ते, चिन्ह तलाशते, फिर कुर्सियों की ओर दौड़ते नजर आए। किसी ने अपने पार्षद को प्रतीक चिन्ह के बदले मिठाई का डिब्बा पकड़ाया, तो कोई अब तक ढूंढ़ रहा है कि वार्ड नंबर 28 के मिश्रा जी का चिन्ह आखिर किस बॉक्स में गया?
🤦♀️ महापौर नाराज, जनता उदास, अफसर पस्त!
सारे दृश्य को देख महापौर सुषमा खर्कवाल का मूड भी बिगड़ गया। नाराज़गी चेहरे पर इतनी स्पष्ट थी कि पास खड़े फूलों ने भी मुरझा जाना बेहतर समझा। इधर जनता, जो मोबाइल कैमरों से वीडियो बना रही थी, फुसफुसाते हुए पूछ रही थी:
“ये प्रतीक चिन्ह हैं या बम्पर लकी ड्रा?”
😂 कार्यक्रम बना ‘प्रतीक चिन्ह महोत्सव 2025’
सोशल मीडिया पर कार्यक्रम को अब #प्रतीकचिन्हचयन_कुंभ और #जोनल_लॉटरी जैसे नामों से नवाज़ा जा रहा है। लोगों का कहना है कि अगली बार कार्यक्रम में हर पार्षद को QR कोड स्कैन करके प्रतीक चिन्ह लेना चाहिए, ताकि ग़लती न हो।
🧂 तेल खत्म हो जाए, पर घिसी हुई व्यवस्थाएं नहीं!
इस पूरे घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि नगर निगम को पुरस्कारों का कार्यक्रम नहीं, पुरस्कारों की खोज प्रतियोगिता आयोजित करनी चाहिए। और हाँ, अगले बार शायद सम्मान से पहले नामों की प्रूफ रीडिंग क्लास ज़रूरी हो।
अंत में बस यही कहा जा सकता है —
“जिन्हें मिलना था सम्मान, वो ढूंढ रहे हैं नाम; और जिन्हें मिला नाम, वो ढूंढ रहे हैं काम!”