लखनऊ में आबादी से ज्यादा अतिक्रमण, नगर निगम ने आंखों पर डाली पट्टी-रितेश श्रीवास्तव
1 min readलखनऊ में आबादी से ज्यादा अतिक्रमण, नगर निगम ने आंखों पर डाली पट्टी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आबादी और अतिक्रमण के आंकड़े अब एक दूसरे से भी ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं। बीते वर्ष 2024 में लखनऊ की आबादी 40 लाख से पार कर गई है, लेकिन यह आबादी शहर में फैले अतिक्रमण की वजह से कहीं कम प्रतीत हो रही है। सड़कों पर अवैध कब्जों के कारण राहगीरों का चलना दूभर हो चुका है, और शहर का हर कोना अतिक्रमण की गिरफ्त में है।
जहां एक ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार अतिक्रमण को हटाने के आदेश जारी कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नगर निगम के अधिकारी और पुलिस की मिलीभगत के कारण यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। विशेष रूप से “नो वेंडिंग जोन” अब दबंगों के कब्जे में आते जा रहे हैं, जिनसे पूरे शहर की यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है। कामकाजी लोग, जिनमें विशेषकर अन्य राज्यों से आए लोग शामिल हैं, बिना किसी रोक-टोक के सड़कों पर अपनी दुकानें सजा रहे हैं। जब कोई अधिकारी आता है, तो वह भी अवैध दुकानदारों से रिश्वत लेकर उन्हें बेधड़क दुकानें चलाने की अनुमति दे देता है।
लखनऊ नगर निगम में कुल आठ जोन हैं, और इन जोनों का प्रभार चार अपर नगर आयुक्त और आठ जोनल अधिकारी देख रहे हैं। इसके बावजूद, शहर में अतिक्रमण बढ़ते जा रहे हैं और निगम इस पर कोई कड़ा कदम उठाने में नाकाम रहा है। पहले से मौजूद अतिक्रमणों की वजह से पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है, और नए अतिक्रमण और भी बढ़ते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द ही इन अतिक्रमणों को हटाया नहीं गया, तो आपातकालीन स्थितियों में शहर की स्वास्थ्य सेवाओं, आपातकालीन सेवाओं और सुरक्षा व्यवस्था में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। अतिक्रमण के कारण गाड़ियों की आवाजाही में रुकावटें, पैदल मार्गों की बाधाएं और कई अन्य समस्याएं पैदा हो रही हैं, जिनका असर सीधे तौर पर लखनऊवासियों पर पड़ रहा है।
लखनऊ में अतिक्रमण को लेकर बिगड़ती स्थिति को देखते हुए यह जरूरी है कि नगर निगम और पुलिस विभाग मिलकर सख्त कदम उठाएं ताकि शहर को इस असंगठित अतिक्रमण के जाल से मुक्ति मिल सके और नागरिकों को राहत मिल सके।