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लखनऊ में रावण के साथ नहीं जले मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले, क्यों हुआ ऐसा?

विजयदशमी पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण के दंभ को चूर-चूर कर दिया। शहर से गांवों तक असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में अधर्म, अनाचार, लोभ, क्रोध, अभिमान से परिपूर्ण रावण के पुतले का दहन किया गया। इधर प्रभु श्रीराम तीर चलाकर रावण का अंत करते हैं कि उधर रावण का पुतला धू-धू कर जलने लगता है। यह देख पूरा रामलीला मैदान जय श्री राम …. के जयकारों से गूंज उठता है। ऐशबाग रामलीला मैदान पर आयोजित ऐतिहासिक रामोत्सव में मंगलवार को लखनऊ का सबसे ऊंचे करीब 80 फुट के रावण का दहन किया गया। यहां इस बार रावण के पुतले की छाती पर ‘सनातन धर्म के विरोध का दमन हो’ का शीर्षक लिखकर उसका दहन किया गया। हालांकि पहले की ही तरह इस बार भी रावण के पुतले के साथ कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले का दहन समिति ने नहीं किया।

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