लखनऊ में रावण के साथ नहीं जले मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले, क्यों हुआ ऐसा?
विजयदशमी पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण के दंभ को चूर-चूर कर दिया। शहर से गांवों तक असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में अधर्म, अनाचार, लोभ, क्रोध, अभिमान से परिपूर्ण रावण के पुतले का दहन किया गया। इधर प्रभु श्रीराम तीर चलाकर रावण का अंत करते हैं कि उधर रावण का पुतला धू-धू कर जलने लगता है। यह देख पूरा रामलीला मैदान जय श्री राम …. के जयकारों से गूंज उठता है। ऐशबाग रामलीला मैदान पर आयोजित ऐतिहासिक रामोत्सव में मंगलवार को लखनऊ का सबसे ऊंचे करीब 80 फुट के रावण का दहन किया गया। यहां इस बार रावण के पुतले की छाती पर ‘सनातन धर्म के विरोध का दमन हो’ का शीर्षक लिखकर उसका दहन किया गया। हालांकि पहले की ही तरह इस बार भी रावण के पुतले के साथ कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले का दहन समिति ने नहीं किया।
इस मौके पर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, नम्रता पाठक, पूर्व उप मुख्यमंत्री व सांसद डॉ दिनेश शर्मा, मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा समेत अन्य लोग मौजूद रहे। इस दौरान समिति के अध्यक्ष हरीशचन्द्र अग्रवाल और सचिव आदित्य द्विवेदी ने सभी को अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह और रामचरित मानस की प्रतियां भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर पर सर्वेश अस्थाना, मयंक रंजन सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
तीर चला कर राम ने किया रावण दहन
चिनहट की रामलीला में शाम को राम – रावण युद्ध का मंचन रामलीला मैदान में हुआ। मैदान में आमने सामने के युद्ध का सजीव मंचन किया गया। इस देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे। यहां कुंभकरण, मेघनाद के बाद भगवान ने रावण का वध किया और एक तीन चलाकर सड़क के उस पर खड़े 35 फुट ऊंचे दसानन की ओर एक बांण छोड़ी और रावण धू-धू का जल उठा। समूचा रामलीला मैदान उत्साह से जय श्री राम के जयघोष से गूंज उठा। यहां दो दिवसीय मेला भी आयोजित किया गया है।



